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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Wednesday 28 December 2011

बुरी नीयत

आज क्या हो गया हैं आदमी को ऐसी नीयत क्यूँ हो गई हैं आदमी की आज हमारी माँ,बहन कोई सुरक्षित नहीं हैं इस नीयत से क्यूँ ऐसी नीयत हो गई हैं आदमी की इतने गिर क्यूँ गए हैं आदमी आज हम ये भूल गए हैं हम सब ऊपर वाले की संतान हैं और हमारी बुरी नज़र और नीयत हमे खुद की नजरो में ,परिवार की नज़रो में , समाज की नजरो में, और ऊपर वाले के नज़रो में गिरा देगी हमे अपनी बुरी नीयत को एक अच्छी नीयत में बदलना होगा तभी हम खुद की नजरो में उठ पायेंगे और इंसानियत अथवा मानवता की लाज बचा पायेंगे क्यूंकि एक अच्छे इंसान की नीयत अच्छी होती हैं जो बुरी नज़र रखते हैं वे इंसान नहीं होते हैं

गरीब आदमी

वो गरीब आदमी ही तो हैं जो बिना छत के सोता हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो हर दर्द को भूलता मुस्कुराता जीता हैं 
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो रिक्शा चलाता गीत-गुनगुनाता रहता हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो कम में गुजारा करके भी  खुश रहता हैं हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो मेहनत कर के भी दो वक़्त की रोटी को तरश्ता  हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं   
जो गरीबी में जीता गरीबी में ही गुजर जाता हैं.

दहेज़ एक बड़ी गलती

इंसानियत क्या होता हैं यह जानना जरुरी हैं क्यूंकि अगर हम जान गए तो फिर कई मुश्किले कई समस्याए खुद ब खुद सुलझ जायेंगी एक मुस्किल जो बहुत मुस्किल हैं उससे आपको रूबरू कराता हूँ दहेज़ की समस्या जिसके कारण लडकियों के जन्म पे हम दुखी होते हैं अगर हम सब ये ठान ले की हमे दहेज़ नहीं लेना हैं तो एक बड़ी समस्या से हमारा समाज बाहर आ सकता हैं तो मेरे साथ आप भी आज ,अभी, इसी वक़्त ये वादा खुद से कीजिये की आप अपनी शादी में दहेज़ को नकार देंगे ऐसा करके हम इंसानियत का नाम उच्चा कर पायेंगे

आम आदमी

दहेज़ आम आदमी का बोझ  हैं
महंगाई तो अभी अलग हैं
बर-बीमारी आम आदमी की तकलीफ हैं,
तो पढाई-लिखाई अलग हैं
बेरोजगारी आम आदमी के साथ हैं
तो आम आदमी का वेतन भी कम हैं
ठंड की मार से मरता आम आदमी हैं
तो गर्मी झेलता आम आदमी हैं
पुलिस का डंडा खाता आम आदमी हैं
तो जेल में चक्की पीसता आम आदमी हैं
भूखे मरता आम आदमी हैं
तो सड़क पे कुचलता आम आदमी हैं
बसों में चड़ना हो या उतरना
जूझता आम आदमी हैं
करता हैं कठोर मेहनत
पर रोता आम आदमी हैं,
जीता हैं पर हर झख्म सीता आम आदमी हैं
सपनो की दुनिया में सोता आम आदमी हैं,
नींद पूरा किये बिना काम पे निकलता आम आदमी हैं

जो इंसान होते हैं

जो इंसान होते हैं ,वे वैर ईर्ष्या,घृणा और द्वेष नहीं करते है वे तो हर एक को प्रेम करते हैं, हर एक की मदद के लिए तत्पर रहते हैं उनके लिए किसी के प्रति कोई भेद भाव नहीं होता हैं वे तो सब की सुख और ख़ुशी की प्राथना करते हैं जो इंसान होते हैं वे वैर, ईर्ष्या,घृणा और द्वेष नहीं करते हैं