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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Tuesday 31 January 2012

उनकी ख़ुशी की खातिर

उनकी ख़ुशी की खातिर कुछ कर गुजरने को जि चाहता हैं ,
उनकी एक मुस्कुराहट पे अब मर जाने को जि चाहता हैं ,
उनकी चाहत की खातिर हद से गुजरने को जि चाहता हैं,
उनकी मोहब्बत में अब मिट जाने को जि चाहता हैं,
उनकी ख़ुशी की खातिर कुछ कर गुजरने  को जि चाहता हैं,
उनकी एक मुस्कुराहट पे अब मर जाने को जि चाहता हैं ,
उनकी ख्वाबों  की खातिर ख्वाब  बुनने  को जी चाहता हैं
उनकी ख्यालों में अब खो जाने को जि चाहता हैं
उनकी साँसों में अब समा जाने को जि चाहता हैं
उनकी सपनो की खातिर सपने देखने को जि चाहता हैं
बस उन्हें अपना बना लेने को जि  चाहता हैं
उनकी खुशी की खातिर कुछ कर गुजरने को जि करता हैं
उनकी एक मुस्कराहट पे अब मर जाने को जि चाहता हैं

Friday 27 January 2012

ये भी कोई दोस्ती हैं

ये भी कोई दोस्ती हैं
क्या ऐसे दोस्त होते हैं
जो मुझसे मेरे आलिशान मकान के कारण दोस्ती करते हैं
तो कुछ मेरे मोटर-कार  के कारण
ये भी कोई दोस्ती हैं
क्या ऐसे दोस्त होते हैं
जो मुझसे मेरी पहुच के कारण दोस्ती करते हैं
तो कुछ मेरी सुन्दरता के कारण
ये भी कोई दोस्ती हैं
क्या ऐसे दोस्त होते हैं
जो मेरी कामयाबी में साथ होते हैं
तो कुछ मेरी ख़ुशी में सिर्फ  शरीक होते हैं
ये भी कोई दोस्ती हैं
क्या ऐसे दोस्त होते हैं
गर ऐसे दोस्त होते हैं
तो नहीं चाहिए ऐसे दोस्ती
ये भी कोई दोस्ती हैं
१-किसी से दोस्ती करनी हैं तो उसके आचरण एवं चरित्र  को देखो न की उसकी सुन्दरता ,पहुच और धन-दौलत को
२-दोस्ती दिल से होती हैं दौलत से नहीं
  दोस्त दुःख में पहचाने जाते हैं सुख में नहीं 
                          (दोस्ती के बारे में मेरे दो सब्द )

अब बहुत हो गया

अब बहुत हो गया
कुछ नहीं अब सहना हैं
चुप नहीं अब रहना हैं
कब तक दहेज़ की पीड़ा सहते रहे
महंगाई की मार खाते रहे
अब बहुत हो गया
कुछ नहीं अब सहना हैं
कब तक बिरोजगार मारा फिरते रहे
अंग्रेजी के आगे घुटने टेकते रहे
कब तक खामोश सब सहते रहे
मज़बूरी का रोना रोते रहे
आंखे बस चुराते रहे
बच्चो का शोषण कराते रहे
अब और नहीं बहुत हो गया
कुछ नहीं अब सहना हैं
चुप नहीं अब रहना हैं

Monday 23 January 2012

मैंने जिन्दगी को करीब से देखा हैं

मैंने जिन्दगी को करीब से देखा हैं
आँखों में आंसू,दिल में दर्द देखा हैं
घरो को उजरते ,लोगो को बिछरते देखा हैं
मैंने जिन्दगी को करीब से देखा हैं
औरतों पे हो रहा अत्याचार देखा हैं
सड़क पे पड़ा  इंसान देखा हैं
महाजनों का चूसता ब्याज देखा हैं
 किसानों के कर्ज का बोझ देखा हैं
मैंने जिन्दगी को करीब से देखा हैं
आँखों में आंसू ,दिल में दर्द देखा हैं
दहेज़ की आग में जलती लडकियों को
विधवाओ को जिन्दा मरते देखा हैं
 बाप की चिंता ,भाई की मज़बूरी देखा हैं
 मैंने जिन्दगी को करीब से देखा हैं
आँखों में आंसू ,दिल में दर्द देखा हैं

जाने क्यों ऐसी होती हैं लड़किया

  जाने क्यों ऐसी होती हैं लड़किया
  नखरे कितने करती हैं लड़किया
  डाट परी की आंसू बहाती हैं लड़किया
  जाने क्यों ऐसी होती हैं लड़किया
  भाव बड़ा खाती हैं लड़किया
  बेकार की बाते करती हैं लड़किया
  दिलों से कितने खेलती हैं लड़किया
 चैट किसी से कॉल किसी को करती हैं लड़किया
 घमंड इतना क्यों करती हैं लड़किया
 कितने बहाने  बनाती हैं लड़किया
 मजाक किसी से प्यार किसी को करती हैं लड़किया 
जाने ऐसे सितम  क्यों करती हैं लड़किया 
सुन्दरता के पीछे भागती हैं लड़किया 
दोस्ती करके निभाती नहीं लड़किया
ऐसे ये क्यों होती हैं लड़किया
नखरे कितने करती हैं लड़किया
जाने क्यों ऐसी होती हैं लड़किया .

(मैं ये ब्लॉग लिखकर लडकियों  के भावनाओ को चोट पहुचाना नहीं चाहता ,मैंने तो इस ब्लॉग के माध्यम से उन थोरी लडकियों को सन्देश देना चाहता हूँ जो इस तरह के कार्य करती हैं (सुन्दरता पे घमंड ,दिलो से खिलवाड़ ,विश्वासघात इत्यादि ) मैं पूनम जी ,अंजू जी,ज्योति गुप्ता जी और ममता जी का सुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने ये सुझाव मुझे दिया )
.......आप सबका धन्यवाद

 

Wednesday 18 January 2012

सिर्फ विचारो से क्या होगा


सिर्फ विचारो से क्या होगा
अब कमर कसना होगा
चुप रहने से क्या होगा
अब आग उगलना होगा
                    पशु-सा-जीके क्या होगा
अब आदमी बनना होगा
झूठ बोलने से क्या होगा
सच का सामना करना होगा
बईमानी की बातो से क्या होगा
मिशाल ईमानदारी का देना होगा 
सिर्फ आहे भरने से क्या होगा
अब हीमत जुटाना होगा 
सिर्फ पढने से क्या होगा
लिखी बातो को समझना होगा
समय गवाने से क्या होगा
महत्व इसका समझना होगा
कब तक दुःख सहना होगा
कुछ - कुछ तो करना होगा
अपनी बात रखना होगा
कुछ तो ऐसा करना होगा 
सिर्फ विचारो से क्या होगा
अब कमर कसना होगा
चुप रहने से क्या होगा
अब आग उगलना होगा

मेरी बाते


मैं एक इंसान हु इंसानियत ही मेरा धर्म हैं और वहीँ मेरा कर्म हैं मैं जाति,रंग,रूप ,क्षेत्र ,धर्म तथा अन्य चीजो का फर्क या अंतर नहीं करता मैं एक इंसान हु और इंसान से दोस्तीं करना पसंद करता हु और उसकी सेवा ही मेरा धर्म तथा कर्म समझता हु मेरी नजर में इंसान कौन हैं -जो इमानदार हो ,सचा हो ,मेहनती हो परोपकारी हो,कर्तव्यपरायण हो ,जो अपने माता पिता तथा परिवार की सेवा करता हो ,जो समाज सेवा तथा देस सेवा के लिए तत्पर हो, जो धर्म, जाति ,रंग,क्षेत्र तथा अन्य चीजो से कोई मतलब नहीं रखता हो जिसका एक ही उदेश्य हो ----कठोर परिश्रम से माता-पिता ,परिवार,समाज,देश की सेवा तथा संपूर्ण मानव-समुदाय की सेवा करना 

Sunday 15 January 2012

वो जबाना बचपन का

क्या समय था बचपन का, वो जबाना बचपन का
थोरा नटखट ,थोरी शरारत करता था
कोई परवाह नहीं करता था ,बस अपनी धुन में रहता था
घंटो खेला करता था , छुप-छुप के खाया करता था
खिलौने की जिद करता था ,चौकलेट पे मरता था
बहन के बाल खिचता था , भाई को डाट सुनवाता था
तीतलियो को पकड़ता था ,संग उनके खेला करता था
समय न था तय सोने का, नींद आई तब सोता था
क्या समय था बचपन का , वो जबाना बचपन का
भाई से प्यार पाता था , बहन का दुलार मिल जाता था
पिता के कंधो पे घूमता था ,माँ की गोद में सोया करता था
अपने -पराये की पहचान न थी ,सब ऐसे जैसे अपने लगते थे
बस खुसिया ही खुसिया थी ,गम से मेरा न कोई नाता था
क्या समय था बचपन का ,वो जबाना बचपन का.(मेरे बचपन से जुरी कुछ यादे )

वो माँ का कर्ज


वो माँ का कर्ज चुकाऊ कैसे,वो माँ की ममता लौटाऊ कैसे
वो स्नेह बर्पाऊ कैसे,वो माँ का दुलार जताऊ कैसे
वो माँ का कर्ज चुकाऊ कैसे,वो माँ की ममता लौटाऊ कैसे
वो लोरी सुनाऊ कैसे,वो खिलौना लौटाऊ कैसे
वो माँ का प्यार बर्पाऊ कैसे,वो माँ की ममता लौटाऊ कैसे
वो चलना सिखाओ कैसे,वो बोली लौटाऊ कैसे
वो माँ का कर्ज चुकाऊ कैसे,वो माँ का दिल बहलाऊ कैसे
वो गोद में सुलाना,आंचल में छिपाना
वो काजल लगाना,बुरी नजरो से बचाना
वो सिने से लगाना और खून पिलाना
वो माँ का कर्ज चुकाऊ कैसे,वो माँ की ममता लौटाऊ कैसे
वो चिंता जताऊ कैसे,वो फिक्र बताऊ कैसे
वो आंसू लौटाऊ कैसे,वो दर्द मिटाऊ कैसे
वो बीते दिन लौटाऊ कैसे
वो माँ का क़र्ज़ चुकाऊ कैसे,वो माँ की ममता लौटाऊ कैसे
(माँ को समर्पित)

२०११ -१२ त्यौहार की सुभकामनाये कुछ इस तरह


   लोहरी
लोहरी हैं आई संग रौनक हैं लाइ
बाजे हैं बंड-बाजा संग गीत हैं लाइ
तिल-गजक आई संग मूंगफली भी लाइ
पोप्कौन ढेरो लाइ संग लोहरी हैं आई
नए दिन आई संग रात भी लाइ 
                           देखो अपनी लोहरी हैं आई   
           क्रिश्मस
क्रिश्मस करीब रहा हैं
रंग फिजाओ में छा रहा हैं
मौषम भी बेईमान हो रहा हैं
क्रिश्मस का दिन रहा हैं
प्यार भरा पैगाम ला रहा हैं
चेहरे पे मुस्कान ला रहा
क्रिश्मस देखो करीब रहा हैं  

       नया साल
     
एक नई सोच, एक नयी जोश , एक नई उम्मीद ,एक नया उमंग , एक नया तरंग ,एक नया विश्वाश,एक नई लहर ,एक नया इरादा ,एक नयी हीमत ,एक नया रंग ,एक नयी तमन्ना ,एक नई चाहत ,एक नया मकसद एक नई इक्षा,एक नई बुलंदी ,एक नयी तस्वीर लेके आया हैं ये नया साल मुबारक हो विवेक हमन की और से ये खुशियों भरा साल आप सबको 

                  

बड़ा आदमी /धनि आदमी


लोग कहते हैं उसे बहुत सम्पति हैं उसके पास महंगी कार हैं तथा अन्य चीजे हैं इसलिए वो धनि आदमी हैं पर मैं उसे बड़ा आदमी मानता हूँ जो असहाए ,कमजोर,पिछरे और गरीब लोगो की मदद बिना किसी भेद भाव (भेद-भाव मतलब -जाति,पाती ,रंग -रूप ,धर्म  भाषा ,लिंग और अन्य तरह के भेद  करना ) के करे.

मेरी खुसी

मुझे दुसरो की मदद करके ख़ुशी महसूस होती हैं जब मैं किसी असहाए , जरुरत मंद ,शोषित अथवा पिरीत एवं प्रतारित  लोगो की  मदद करता हूँ तो मुझे एक अलग ख़ुशी मिलती हैं जो मेरी तमाम खुशियों से बढ़ी होती हैं और मैं अपने जीवन में जबतक जीवुंगा तबतक जरुरत मंदों की मदद करता रहूँगा क्योंकि अपने लिए तो सब जीते हैं जो दुसरो के लिए जिए वो इंसान होता हैं और मैं एक इंसान हूँ

मेरे अनुसार दोस्त

 

१- मेरे अनुसार दोस्त --सिर्फ हेलू एंड हाउ यु
२-अच्छे दोस्त -जो मानसिक और शारीरिक रूप से मदद करने को तैयार रहे
३-सबसे अच्छे दोस्त -जो मानसिक ,शारीरिक और धन सम्पति से मदद करने को तैयार रहे

मेरी सोच

न तो मैं हिन्दू  हूँ न मुसलमान हूँ न सिख हूँ न इशाई हूँ
न तो मैं राजपूत हूँ न अहीर हूँ न जाट हूँ न गुज्जर हूँ
न तो मैं बिहारी हूँ न बंगाली हूँ न असामी हूँ न गुजराती हूँ
मैं तो एक इन्सान हूँ और इंसानियत ही मेरा धर्म हैं
और इंसान की सेवा ही मेरा कर्म हैं -ये मेरा सन्देश हैं