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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Friday 3 February 2012

मेरी सोच (२ )

मैं जब भी कोई गलती करता हूँ
तो कुछ नया सीखता हूँ
क्या आप भी अपनी गलती से सिख लेते हो
नहीं तो सिख लो की आप वो गलती दुबारा नहीं करोगे
जो पहले भी आपने की हैं 
जहा तक गलतियों का सवाल हैं
गलती सिर्फ इंसान नहीं करते
हमने भगवान की गलतियों के बारे में भी सुना हैं
पर गलती को स्वीकार करना एवं सुधार करना
एक अच्छे इंसान की पहचान होती हैं

मैं और मेरा शायराना अंदाज (१ )

1- अर्ज किया हैं मेरे हालात कुछ ऐसे हैं की बया नहीं कर सकता
किया हैं जिससे मोहब्त उसे अपना नहीं सकता
मेरे हालात कुछ ऐसे हैं की बया नहीं कर सकता
पाकर भी उसको पा नहीं सकता मेरे हालात कुछ ऐसे हैं की
बया नहीं सकता
2-कल हम नहीं सिर्फ हमारी यादे होंगी
खोजोगे मुझको पर जाने हम कहा होंगे

प्यारी बच्ची

जितनी प्यारी बच्ची हैं
ऐसी ही उसकी गाड़ी हैं
कर रही मस्त सवारी हैं
निकल परी हैं अपने घर से
स्कूल पहुचने वाली हैं
देख के इसको हसी आ रही हैं
धीरे धीरे ये जा रही हैं
जितनी प्यारी बच्ची हैं
ऐसी ही उसकी गाड़ी हैं

मेरी सोच (१ )

मैं गुड मोर्निंग इसलिए कहता हूँ
१ -अपने घमंड पे काबू रखने के लिए
२-शिस्टाचार,सदाचार और संष्कार के लिए
३-जिसके प्रति मेरे दिल में सम्मान होता हैं उसे प्रकट करने के लिए 

४-चुकी हमे सुबह किसे से मिलने पर गुड मोर्निंग कहना चाहिए

मैं गुड मोर्निंग इसलिए नहीं कहता हूँ
१-दुसरो के नजर में अच्छा बनने के लिए
२-किसी की चापलूसी एवं चमचागिरी करने के लिए

Wednesday 1 February 2012

ये जिन्दगी भी अजीब हैं

ये जिन्दगी भी अजीब हैं
कभी हसाती तो कभी रुलाती हैं
पल भर की खुशी तो पल में गम देती हैं
किसी को प्यार तो  किसी को तन्हाई देती हैं
ये जिन्दगी भी अजीब हैं
कभी हसाती तो कभी रुलाती हैं
क्या क्या दिन दिखाती हैं
हर मोड़ पे इम्तिहान लेती हैं
कभी बिछरो को मिलाती हैं
तो कभी अपनों से दूर कराती हैं
किसी के हिस्से में जाम तो किसी को जहर देती हैं
कोई महल में सोता हैं तो किसी को फूटपाथ देती हैं
ये जिन्दगी भी अजीब हैं
कभी हसाती तो कभी रुलाती हैं



मेरा भी मन करता हैं

मेरा भी मन करता हैं
की सपनों के महल को
हकीक़त में ढालु
कोशिश भी जबरदस्त करता हूँ
पर हर बार मात भी मैं खाता हूँ
मेरा भी मन करता हैं
की माँ के सपनों को
साकार करू 
प्रयत्न हर बार करता हूँ
पर हर बार विफल भी मैं होता हूँ
मेरा भी मन करता हैं
की पिता के विश्वास को
मजबूत करू
प्रयास भी हर संभव करता हूँ
पर हर बार कमजोर खुद को पाता हूँ
मेरा भी मन करता हैं
की समाज की बुराई को
दूर करू
चेष्टा जी-जान से करता हूँ
पर हर बार नाउमीद भी मैं होता हूँ
मेरा भी मन करता हैं
की सपनों के महल को
हकीक़त में ढालु
कोशिश भी जबरदस्त करता हूँ
पर हर बार मात भी मैं खाता हूँ