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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 2 September 2012

एक दौर था ,मेरे भी प्यार का

एक दौर था ,मेरे भी प्यार का
मैं भी किसी से प्यार करता था
चाहता था उसको , उसपे ही मरता था
एक दौर था, मेरे भी प्यार का
मगर क्या उसको भी मुझसे से प्यार था
इससे मैं अनजान था
मगर ये सच हैं कि, मुझे उससे प्यार था
करना मुझे इज़हार था
मगर कर न पाया
कि मुझे उससे प्यार था
एक दौर था ,मेरे भी प्यार का
मैं भी किसी से प्यार करता था
वो मुझसे कुछ न कह पाई
और न मैं ही कुछ कह पाया
आँखों ही आँखों में इशारे होते रहे
देखते-ही-देखते वक़्त गुजर गया
वो मुझसे बिछड़ गई
और मैं उससे जुदा हो गया
तब से अब तक न भूल पाया हूँ उसको
गर मिली तो पूछूँगा , क्या उसको भी मुझसे प्यार था
एक दौर था ,मेरे भी प्यार का
मैं भी किसी से प्यार करता था


पिता भी कम प्यार नहीं करते

पिता भी कम प्यार नहीं करते
दर्द तो पिता को भी होती हैं
जब हमारे आँखों में आंसू होता हैं
पिता भी कम प्यार नहीं करते
उंगलिया पकड़ के चलना
पिता ही सिखाते हैं
खिलौने की जिद हो
तो पिता ही लाकर देते हैं
कंधे पे घूमना हो तो
पिता ही घुमाते हैं
मिठाई खाने का मन हो तो
लाकर पिता ही खिलाते हैं
पिता भी कम प्यार नहीं करते
दर्द तो पिता को भी होती हैं
जब हमारे आँखों में आंसू होता हैं
पिता भी कम प्यार नहीं करते
त्यौहार पे नये कपड़े
पिता ही खरीदते हैं
जब बम-पटाखे फोड़ने का मन हो
तो पिता ही लाकर देते हैं
परीक्षा केंद्र पे रहके घंटो इंतज़ार
पिता ही करते हैं
थोड़ी तबियत बिगड़ी नहीं कि
डॉक्टर को बुला के पिता ही दिखाते हैं
पिता भी कम प्यार नहीं करते
दर्द तो पिता को भी होती हैं
जब हमारे आँखों में आंसू होता हैं