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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Thursday, 14 February 2013

आज ही के दिन

आज ही के दिन
मैं जन्मा था
खुशिया बिखरी थी मेरे घर में
गाव में मेरे खबर फैला था
आज ही के दिन
मैं जन्मा था
ढोल बजा था मेरे घर में
गाव में मेरे नगाड़े बजे थे
आज ही के दिन
मैं जन्मा था
सपने जन्मे थे मेरे घर में
गाव में मेरे विश्वास पनपा था
आज ही के दिन
मैं जन्मा था

(मेरे जन्मदिवस पे मेरी पंक्तिया आपको समर्पित-Vivek Human )

Sunday, 14 October 2012

हाँ मैं गरीब हूँ


हाँ मैं गरीब हूँ                                         
पर मुझे दुःख नहीं हैं 
दुःख तो तब होता हैं 
जब मेरी गरीबी का 
मजाक उड़ाया जाता हैं 
हाँ मैं गरीब हूँ 
पर मुझे दुःख नहीं हैं 
तकलीफ तो तब होती हैं 
जब मेरी शराफत का 
फायदा उठाया जाता हैं 
हाँ मैं गरीब हूँ 
पर मुझे दुःख नहीं हैं 
दिल तो तब दुखता हैं 
जब मेरे दर्द को 
और बढाया जाता हैं 
हाँ मैं गरीब हूँ 
पर मुझे दुःख नहीं हैं 
जलन तो तब होती हैं 
जब मेरे जख्मों पे 
नमक छिड़का जाता हैं 
हाँ मैं गरीब हूँ 
पर मुझे दुःख नहीं हैं 
दुःख तो तब होता हैं 
जब मेरी गरीबी का 
मजाक उड़ाया जाता हैं 

Sunday, 7 October 2012

बेटा


माँ की आँखों का तारा हैं बेटा 
उसका राज दुलारा हैं बेटा 
उसकी रातों का सपना हैं बेटा 
उसके दिन का उजाला हैं बेटा 
माँ की आँखों का तारा हैं बेटा 
उसके दिल की तड़प हैं बेटा 
उसकी चिंता का कारण हैं बेटा 
उसका मोह और माया हैं बेटा 
उसकी ममता की निशानी हैं बेटा 
उसके प्यार का अटूट बंधन हैं बेटा 
माँ की आँखों का तारा हैं बेटा
उसका सबसे अपना हैं बेटा 
उसकी स्नेह का प्रतिक हैं बेटा 
माँ की आँखों का तारा हैं बेटा

Saturday, 6 October 2012

क्या हम मजबूर हैं


क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपना बहाना बना लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
दूसरों के नजर में अच्छा 
बनने का रास्ता बना लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
काम से बचने का जरिया बना लिया हैं
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपना दिखावा बना लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपनी नाकामी का नाम दे दिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपनी साधनों का अभाव मान लिया हैं 
क्या हम मजबूर हैं 
या फिर हम्ने मज़बूरी को 
अपना बहाना बना लिया हैं 

Sunday, 2 September 2012

एक दौर था ,मेरे भी प्यार का

एक दौर था ,मेरे भी प्यार का
मैं भी किसी से प्यार करता था
चाहता था उसको , उसपे ही मरता था
एक दौर था, मेरे भी प्यार का
मगर क्या उसको भी मुझसे से प्यार था
इससे मैं अनजान था
मगर ये सच हैं कि, मुझे उससे प्यार था
करना मुझे इज़हार था
मगर कर न पाया
कि मुझे उससे प्यार था
एक दौर था ,मेरे भी प्यार का
मैं भी किसी से प्यार करता था
वो मुझसे कुछ न कह पाई
और न मैं ही कुछ कह पाया
आँखों ही आँखों में इशारे होते रहे
देखते-ही-देखते वक़्त गुजर गया
वो मुझसे बिछड़ गई
और मैं उससे जुदा हो गया
तब से अब तक न भूल पाया हूँ उसको
गर मिली तो पूछूँगा , क्या उसको भी मुझसे प्यार था
एक दौर था ,मेरे भी प्यार का
मैं भी किसी से प्यार करता था