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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Thursday 5 July 2012

मैं और मेरा शायराना अंदाज-१४

१-भूलकर भी उसे भूलना नहीं चाहते
इस कदर उसे चाहते हैं कि दूर होने से डरते हैं
२-तुम्हारा मैं कुछ भी नहीं मगर मेरी बहुत कुछ हो तुम
तुम्हारी नजर में मैं नहीं मगर मेरी जिगर में तुम हो
३-न ये गम होता न ये तन्हाई होती न हम परेशान होते
न तुम होती न वो होती  न हम बर्बाद होते

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