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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं
Monday, 23 July 2012
मैं किसी का मुहताज नहीं
मैं किसी का मुहताज नहीं मेहनत मेरा इमां हैं सच्चाई मेरा धर्म हैं किसी के आगे झुकना मेरी फितरत नहीं सर उठा के जीता हूँ जितना भी कमाता हूँ उसमे संतोष से जीता हूँ हाथ फैलाने का आदत नहीं हैं किसी के आगे गिर्गिराता नहीं मैं किसी का मुहताज नहीं मेहनत मेरा इमां हैं सच्चाई मेरा धर्म हैं
nice
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