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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Wednesday 1 February 2012

ये जिन्दगी भी अजीब हैं

ये जिन्दगी भी अजीब हैं
कभी हसाती तो कभी रुलाती हैं
पल भर की खुशी तो पल में गम देती हैं
किसी को प्यार तो  किसी को तन्हाई देती हैं
ये जिन्दगी भी अजीब हैं
कभी हसाती तो कभी रुलाती हैं
क्या क्या दिन दिखाती हैं
हर मोड़ पे इम्तिहान लेती हैं
कभी बिछरो को मिलाती हैं
तो कभी अपनों से दूर कराती हैं
किसी के हिस्से में जाम तो किसी को जहर देती हैं
कोई महल में सोता हैं तो किसी को फूटपाथ देती हैं
ये जिन्दगी भी अजीब हैं
कभी हसाती तो कभी रुलाती हैं



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