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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Monday, 14 May 2012

माँ को कभी भुलाना नहीं

माँ को कभी भुलाना नहीं
भूलकर भी उसे रुलाना नहीं
कभी उस से दामन छुराना नहीं
किसी बात पे उसे सताना नहीं
भुगतोगे वरना जिन्दगी  भर
कभी ऐसे काम करना नहीं
माँ को कभी गाली देना नहीं
भूलकर भी उसे बुरा कहना नहीं
कभी उसे आंख दिखाना नहीं
किसी बात पे उसपे बिगरना नहीं
पछताओगे वरना जिन्दगी भर
कभी ये गुनाह करना नहीं
माँ को कभी भुलाना नहीं
भूलकर भी उसे रुलाना नहीं

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