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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 13 May 2012

प्रकृति के प्रकोप से नहीं बच पाया हैं कोई

प्रकृति के प्रकोप से नहीं बच पाया हैं कोई
जब आता हैं तूफान तो क्या आमिर -क्या गरीब
सबके घरों के दिए बुझा जाता हैं
ये न कोई जाति देखता हैं ,न ही कोई धर्म समझता हैं
बिन बताये आता हैं, सब तहश-नहश कर जाता हैं
कही सुनामी तो कही भूकंप लाकर हरकंप मचाता हैं
कभी बाढ़ तो कभी सूखा लेकर आता हैं
जब कभी भी आता हैं ,ढेरों गम दे जाता हैं
ये प्रकृति का प्रकोप हैं इस से नहीं बच पाया हैं कोई
जब आता हैं तूफान तो क्या आमिर -क्या गरीब
सबके घरों के दिए बुझा जाता हैं

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