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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 13 May 2012

मेरा गुस्सा फूट न जाए

मेरा गुस्सा फूट न जाए
मुझे डर हैं मुझसे खुछ हो न जाए
क्या-क्या सहू मैं ,किस -किस की सुनू मैं
कहाँ जाऊ और किस से कहू मैं
कितना सब्र करू मैं ,और कब तक मौन रहू मैं
जाने कब वो बदलाव आएगा
कैसे वो बदलाव आएगा
जब समाज से कुरीतिया दूर होंगी
जाति-धर्म का भेद मिटेगा
कब अमिरी-गरीबी का खाई भरेगा
देखते-देखते अरसा बीत गया
कुछ नहीं बदला ,और नहीं बदल रहा हैं
अब मेरा गुस्सा फूट न जाए
मुझे डर हैं मुझसे खुछ हो न जाए

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