हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
ऐसी भी क्या मज़बूरी हैं आदमी की
क्यों इतना मायूस हैं आदमी
सपने सजोए सोता हैं आदमी
आश लगाये बैठा हैं आदमी
हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
क्यों इतना बेचैन हैं आदमी
इतना क्यों हैरान हैं आदमी
क्यों इतना परेशान हैं आदमी
हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
ऐसी भी क्या मज़बूरी हैं आदमी की
क्यों इतना मायूस हैं आदमी
सपने सजोए सोता हैं आदमी
आश लगाये बैठा हैं आदमी
हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
क्यों इतना बेचैन हैं आदमी
इतना क्यों हैरान हैं आदमी
क्यों इतना परेशान हैं आदमी
हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
No comments:
Post a Comment