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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 13 May 2012

हालात से कितना मजबूर हैं आदमी

हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
ऐसी भी क्या मज़बूरी हैं आदमी की
क्यों इतना मायूस हैं आदमी
सपने सजोए सोता हैं आदमी
आश लगाये बैठा हैं आदमी
हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी
क्यों इतना बेचैन हैं आदमी
इतना क्यों हैरान हैं आदमी
क्यों इतना परेशान हैं आदमी
हालात से कितना मजबूर हैं आदमी
जिन्दगी से कितना मायूस हैं आदमी





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