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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 13 May 2012

माँ जो कुछ सोचती हैं हमारे खातिर सोचती हैं

माँ जो कुछ सोचती हैं हमारे खातिर सोचती हैं
माँ जो कुछ चाहती हैं हमारे खातिर चाहती हैं
माँ जो कुछ करती हैं हमारे लिए करती हैं
माँ जो कुछ मांगती हैं हमारे लिए मांगती हैं
माँ जो कोई सपने देखती हैं  हमारे लिए देखती हैं
माँ जो तकलीफे सहती हैं  हमारे लिए सहती हैं
माँ जो आंसू  बहाती हैं हमारे लिए बहाती हैं
माँ जो कुछ देखती हैं हमारे लिए देखती हैं
माँ जो कुछ सोचती हैं हमारे खातिर सोचती हैं
माँ जो कुछ चाहती हैं हमारे खातिर चाहती हैं

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