दहेज़ आम आदमी का बोझ हैं
महंगाई तो अभी अलग हैं
बर-बीमारी आम आदमी की तकलीफ हैं,
तो पढाई-लिखाई अलग हैं
बेरोजगारी आम आदमी के साथ हैं
तो आम आदमी का वेतन भी कम हैं
ठंड की मार से मरता आम आदमी हैं
तो गर्मी झेलता आम आदमी हैं
पुलिस का डंडा खाता आम आदमी हैं
तो जेल में चक्की पीसता आम आदमी हैं
भूखे मरता आम आदमी हैं
तो सड़क पे कुचलता आम आदमी हैं
बसों में चड़ना हो या उतरना
जूझता आम आदमी हैं
करता हैं कठोर मेहनत
पर रोता आम आदमी हैं,
जीता हैं पर हर झख्म सीता आम आदमी हैं
सपनो की दुनिया में सोता आम आदमी हैं,
नींद पूरा किये बिना काम पे निकलता आम आदमी हैं
...bahut achha likha hai Vivek!
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