वो गरीब आदमी ही तो हैं जो बिना छत के सोता हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो हर दर्द को भूलता मुस्कुराता जीता हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो रिक्शा चलाता गीत-गुनगुनाता रहता हैं
जो रिक्शा चलाता गीत-गुनगुनाता रहता हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो कम में गुजारा करके भी खुश रहता हैं हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो मेहनत कर के भी दो वक़्त की रोटी को तरश्ता हैं
वो और कौन हैं गरीब आदमी ही तो हैं
जो गरीबी में जीता गरीबी में ही गुजर जाता हैं.
जो गरीबी में जीता गरीबी में ही गुजर जाता हैं.
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