कुछ नहीं अब सहना हैं
चुप नहीं अब रहना हैं
कब तक दहेज़ की पीड़ा सहते रहे
महंगाई की मार खाते रहे
अब बहुत हो गया
कुछ नहीं अब सहना हैं
कब तक बिरोजगार मारा फिरते रहे
अंग्रेजी के आगे घुटने टेकते रहे
कब तक खामोश सब सहते रहे
मज़बूरी का रोना रोते रहे
आंखे बस चुराते रहे
बच्चो का शोषण कराते रहे
अब और नहीं बहुत हो गया
कुछ नहीं अब सहना हैं
चुप नहीं अब रहना हैं
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