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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Saturday 24 March 2012

कुछ ऐसे ही (३ )

मन कुछ नहीं सोच पा रहा हैं
पर दिल हैं जो नहीं मान रहा हैं
कुछ लिखने की इक्छा इस दिल को हैं
पर मन में कोई बात नहीं आ रहा हैं
मगर क्या करू जो दिल में हैं
उसे लिख दे रहा हूँ
शायद इस दिल की बात अच्छी लगे
बस दिल सबकी ख़ुशी चाहता हैं
सिर्फ लोगों के चेहरे की मुस्कान चाहता हैं
इस दिल में किसी के लिए वैर ,ईर्ष्या,घृणा  नहीं हैं
ये तो सबके दिलों का दर्द समझता हैं
इस दिल में सिर्फ प्यार, दया,ममता, त्याग हैं
ये दिल तो बस सबका भला चाहता हैं
मन कुछ नहीं सोच पा रहा हैं
पर दिल हैं जो नहीं मान रहा हैं
कुछ लिखने की इक्छा इस दिल को हैं
पर मन में कोई बात नहीं आ रहा हैं
मगर क्या करू जो दिल में हैं
उसे लिख दे रहा हूँ

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