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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Saturday 24 March 2012

मेरा दर्द कोई लेता नहीं

मेरा दर्द कोई लेता नहीं
प्यार मुझे कोई देता नहीं
दोस्त तो बन जाते हैं सभी
साथ मगर कोई देता नहीं
कहते तो सभी हैं अपना
पर काम कोई आता नहीं
कोई तो ऐसा हमदर्द होता
जिसको मेरा दर्द होता
कोई तो मुझको समझता
किसी को तो मेरी फिक्र होती
मुझे तो सबका ख्याल होता हैं
कोई तो मेरा ख्याल रखता
मेरा दर्द कोई लेता नहीं
प्यार मुझे कोई देता नहीं 
दोस्त तो बन जाते हैं सभी
साथ मगर कोई देता नहीं

4 comments:

  1. yes but what to write, sometimes i have to write it because my heart wants to write it

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  2. Wow!! amazing..well written..

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