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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday, 18 March 2012

सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं

सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं
मुख में राम तो बगल में छुरी हैं
सुख में साथ  तो दुःख में दुरी हैं
सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं
हाथ में हाथ हैं जब पास में माल हैं
कोई नहीं साथ हैं जब खाली  हाथ हैं
दिल में सम्मान हैं जब तक  शान हैं
रहता नहीं कोई जब गिरता आन हैं
सगे- संबंधी छोरों अपना-पराया न कोई
मुश्किल घड़ी में न कोई साथ देता हैं 
दोस्त हैं तो वो बस स्वार्थ से जुड़ा हैं
काम उसका निकला तो दोस्ती ये कैसी
कैसे करे यहाँ ऐतबार किसी पे
मुश्किल हैं भरोसा करना किसी पे
संभलकर रहना जीना यहाँ पे
क्यूँकि मुख में राम तो बगल में छुरी हैं
सुख में साथ  तो दुःख में दुरी हैं
सब धोखा हैं कभी आपने सोचा हैं




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