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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 29 April 2012

जानकर भी अनजान बनती हैं वो

जानकर भी अनजान बनती हैं वो
करती हैं प्यार,मगर जताती नहीं हैं वो
छुप-छुप के खिरकियो से देखती हैं वो
पर जब सामने आती हैं तो घबरा जाती हैं वो
कभी नजरे मिलाती हैं वो तो कभी नजरे चुराती हैं वो
जानकर भी अनजान बनती हैं वो
करती हैं प्यार,मगर जताती नहीं हैं वो
रुक-रुक के पीछे आती हैं वो
मैं रुका तो चलने का दिखावा करती हैं वो
कभी देखकर मुझको मुस्कुराती हैं वो
तो कभी मुस्कुराकर शरमा जाती हैं वो
जानकर भी अनजान बनती हैं वो
करती हैं प्यार,मगर जताती नहीं हैं वो

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