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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Sunday 3 June 2012

जिन्दगी की राह

ये जिन्दगी की राह भी कई राह दिखाती हैं
कभी इस राह पे ले आती हैं
तो कभी उस राह पे चलाती हैं
कभी मंजिल से दूर पहुचाती हैं
तो कभी मंजिल के करीब ले आती हैं
ये जिन्दगी की राह भी कई राह दिखाती हैं
किसी को सही राह दिखाती हैं
तो किसी को गलत राहों पे भटकाती हैं
ये जिन्दगी की राह भी कई राह दिखाती हैं
कोई अपना राहों पे बन जाता हैं
तो कोई बेगाना राहों पे हो जाता हैं
ये जिन्दगी की राह भी कई राह दिखाती हैं






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