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बचपन से लिखने का शौक हैं कभी-कभी सोचकर लिखता हूँ तो कभी-कभी सब्द खुद ही जहन में आकर लिखने को मजबूर करते हैं

Thursday 16 August 2012

कितने इम्तिहान लेगी जिन्दगी मुझसे

कितने इम्तिहान लेगी जिन्दगी मुझसे
कब तक देना होगा परीक्षा जिन्दगी का
कभी-कभी तो ऐसा लगता हैं
अब मैं खड़ा उतर नहीं पाउँगा
इस बार मैं असफल हो जाऊँगा
मगर दिल से आवाज आती हैं
दो इम्तिहान इस बार भी
शायद इस बार सफल हो जाओगे
न जाने कब वो घड़ी आयेगी
जो मुझे ख़ुशी दे जाऐगी
उस वक़्त के इंतजार में
जिन्दगी के हर इम्तिहान को
बखूबी दे रहा हूँ
पर कभी-कभी ऐसा लगता हैं
कितने इम्तिहान लेगी जिन्दगी मुझसे
कब तक देना होगा परीक्षा जिन्दगी का


 

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